श्रापित दोष विधान
श्रापित दोष विधान (Shrapit Dosha) हिंदू ज्योतिष शास्त्र में एक प्रकार का दोष है जो किसी व्यक्ति के जन्मकुंडली में उत्पन्न होता है। इसे श्रापित दोष के कारण श्रापित नक्षत्र दोष भी कहा जाता है। यह दोष विशेषतः गुरु ग्रह (बृहस्पति) और राहू ग्रह के संयोग से उत्पन्न होता है। इसे मुख्य रूप से पितृदोष के साथ जोड़कर देखा जाता है।
श्रापित दोष का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में विभिन्न समस्याओं को उत्पन्न कर सकता है, जैसे कि संबंधों में विघ्न, विवाह में देरी, विवाद, स्वास्थ्य समस्याएं, आर्थिक कठिनाइयां, अधिक स्ट्रेस आदि।
श्रापित दोष का उपाय:
- मंत्र जाप: व्यक्ति गुरु ग्रह (बृहस्पति) और राहू के दोष से रक्षा के लिए मंत्र जाप कर सकता है। गुरु मंत्र "ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः" और राहू मंत्र "ॐ भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः" है। व्यक्ति दैनिक जीवन में इन मंत्रों का जाप कर सकता है।
- पूजा और हवन: व्यक्ति गुरु और राहू ग्रह के उपासना और पूजा कर सकता है और उन्हें धूप, दीप, चादर, फूल आदि से चढ़ावा दे सकता है। इसके अलावा, गुरु और राहू के लिए हवन भी किया जा सकता है।
- दान: श्रापित दोष से मुक्ति के लिए व्यक्ति दान कर सकता है। गुरु और राहू के दान के लिए पीले वस्त्र, चना, गुड़, ज्वार, कपूर, शहद, नीला फलाहारी पत्ता आदि दान किया जा सकता है।
- पितृदोष निवारण: श्रापित दोष के साथ ज्यादातर पितृदोष भी जुड़ता है। इसलिए, व्यक्ति को पितृदोष निवारण के लिए पितृ तर्पण और श्राद्ध करने की सलाह दी जा सकती है।