जैन शास्त्र विधि से कालसर्प दोष निवारण
जैन धर्म में शुद्धिकरण और आत्मिक शांति के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। जैन शास्त्रों में बताए गए सिद्धांतों के अनुसार कालसर्प दोष निवारण के लिए निम्नलिखित विधियाँ अपनाई जाती हैं:

पवित्रता एवं ध्यान – अनुष्ठान से पहले शुद्धता और पवित्रता का ध्यान रखा जाता है। मानसिक और शारीरिक रूप से शुद्ध रहकर ही यह अनुष्ठान किया जाता है।

जप और स्तुति – जैन मंत्रों का जाप कर और तीर्थंकरों की स्तुति करके सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित किया जाता है।

नवग्रह पूजन – नवग्रहों को शांत करने के लिए विशेष पूजन किया जाता है जिससे ग्रहों की अशुभता कम होती है।

दान और तपस्या – जैन धर्म में दान और तपस्या को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। कालसर्प दोष के निवारण के लिए जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, और धन दान करना शुभ माना जाता है।

तीर्थ यात्रा – जैन धर्म के पवित्र तीर्थों जैसे शिखरजी, पावापुरी, गिरनार आदि की यात्रा कर वहां प्रार्थना करना लाभकारी होता है।

स्वाध्याय और ध्यान – जैन आगमों का अध्ययन और ध्यान करने से मानसिक शांति मिलती है और दोष का प्रभाव कम होता है।

सामूहिक क्षमापना – जिन लोगों से अनजाने में या जानबूझकर गलतियां हुई हैं, उनसे क्षमा मांगकर और क्षमा दान देकर दोष को कम किया जा सकता है।
कालसर्प दोष निवारण के लाभ

जीवन में सुख-समृद्धि और शांति आती है।

मानसिक तनाव और भय समाप्त होता है।

आर्थिक बाधाओं और करियर में आने वाली परेशानियां कम होती हैं।

पारिवारिक जीवन में सुधार आता है।

आध्यात्मिक उन्नति होती है।
निष्कर्ष

कालसर्प दोष एक गंभीर ज्योतिषीय योग है, लेकिन जैन शास्त्र विधि से किए गए अनुष्ठान इसके प्रभाव को कम कर सकते हैं। जैन धर्म के अनुसार शुद्ध आचरण, ध्यान, स्वाध्याय, और दान-पुण्य के माध्यम से इस दोष का निवारण संभव है। आत्मा की शुद्धि और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने के लिए इन विधियों को अपनाना लाभकारी होता है।